दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥ भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
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रूप
(ख) प्रकृति देश-देश में भेद भाव नहीं करती। एक देश से उठा बादल दूसरे देश में बरस जाता है।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥ अंग गौर शिर गंग बहाये ।
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तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
नी मैनू संवारा सलोना पसंद आ गया ।पसंद आ गया, मेरे मन को भा गया ॥काली कमली बांकी चितवन,वा पे वारूँ मैं तो तन मन,सुनरी सखी
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥ सब durga puja सुख लहै तुह्मारी सरना ।
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥ सहस कमल में हो रहे धारी ।
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
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